तोताराम तोताराम ,
पड़ा देश संकट में , तुम खाते हो आम !
गोदामों में सड़ रहे अनाज ,
भ्रष्टों से भर रहा समाज.
महंगाई जाये निगलती राशन,
जेबों पे कुंडली मारे प्रशासन,
त्राहि त्राहि मचा कोहराम, तोताराम ,
पड़ा देश संकट में , तुम खाते हो आम !
रोज़ हो रहे दुराचार,
से भरा पड़ा समाचार,
तुम्हें नज़र आए ये खेल,
और खेलों का हाल है बेमेल,
न चैन बचा ना मिले इनाम, तोताराम,
पड़ा देश संकट में , तुम खाते हो आम !
खतरे में देश की संप्रभुता,
खंडित हो रही अखंडता ,
मीनार-ए-पाक औ चीनी दीवार,
के बीच पनपती नक्सलिता .
ऐसे खतरों के रहते भी कैसे बैठे हो निष्काम,तोताराम,
पड़ा देश संकट में, तुम खाते हो आम!
फूट डालो और राज करो,
अब इस नीति से तुम बाज आओ,
गरीबी न पूछे जाती पाती वेद-क़ुरान,
अब तो तुम ये जान जाओ.
खुद तो मस्त त्योहारों इफ्तारों में उड़ाते हो मीट व जाम, तोताराम,
पड़ा देश संकट में , तुम खाते हो आम !
श्श्श्श... सुना है तुम्हारा भी विदेशों में है बैंक अकाउंट ,
अपनों को बेचीं है तुमने भी ज़मीनें ओउन डिस्काउंट ,
लेकर नाम, जनता का करेंगे बेड़ा पार,
हर गली नुक्कड़ पर, तुमने खोले दिए हैं बार,
अब और कितना लूटोगे आवाम, तोताराम,
पड़ा देश संकट में , तुम खाते हो आम !
कहने को जनतांत्रिक देश,
पूछे कौन जनता का क्लेष,
हर शाख पर उल्लू बैठा,
धारे है तुम्हारा भेष .
कब तक खाओगे तुम हराम, तोताराम,
पड़ा देश संकट में , तुम खाते हो आम !
खेतों में उग रहे कांक्रिट के जंगल,
सोम या बुद्ध, रहता तुम्हारा मंगल ,
होड़ मची हुक्मरानों में, भ्रष्टाचार का दंगल,
पर जान लो एक दिन टूट पड़ेगा, सब्र का भाकड़ा-नंगल,
फिर तुम दर दर कहते फिरोगे, यह नहीं सभ्यों का काम, तोताराम,
पड़ा देश संकट में, तुम खाते हो आम !
disclaimer : the poem has nothing to do with parrots. Any parrot getting hurt by reading this poem, may ask me for my personal apology to it.
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